श्री जोतराम जी के बारे में
श्री जोतराम जी के पिताजी का नाम सुल्तानाराम, माताजी का नाम किस्तूरी देवी और पत्नी का नाम माता राजकौर जी है
श्री जोतराम जी का जन्म ज्येष्ठ सुदी दशमी सन 1933 (विक्रम संवत 1990 ) को भनिन गांव में हुआ जो की तारानगर तहसील, जिला चूरू – राजस्थान में है।
श्री जोतराम जी ने अपना शरीर भादवा सुदी दशमी सन 1959 (विक्रम संवत 2016 ) सुबह 10 बजे के आसपास त्याग दिया।
भनीण गावं श्री जोतराम जी का प्रमुख मेला चैत्र सुदी रामनवमी (नोवमी) व भादवा सुदी नवमी पर लगता है। [मेले और श्री जोतराम जी के व्रत के दिन की जानकारी आपको श्री जोतराम नोवमी पेज पर मिल जाएगी LINK ]
श्री जोतराम जीवन कथा – भनीण मंदिर के सौजन्य से
श्री जोतराम जी की सत्य कथा भनीण से पहली बार माता राजकौर की जुबानी, “बाबा जोतराम जी की सच्ची कहानी। ” के नाम से प्रकाशित की गयी। जिसमे माता राजकौर और उनके पुत्र रामस्वरूप ने जो बताया, वह लिखा गया है।
श्री जोतराम जी का जीवन
श्री जोतराम जी का मुख्य कार्य खेती करना था और कभी कभी भेद बकरी भी चराते थे। जोतराम जी प्रतिदिन स्नान करके भोजन ग्रहण करते थे। केदारनाथ, बद्रीनाथ और हरिद्वार से पंडित हर वर्ष यहाँ राजस्थान के गावँ में यजमानो के पास दान-दक्षिणा लेने के लिए आते थे। जोतराम जी ने बद्रीनाथ के पंडित दयानंद शर्मा को अपना गुरु बनाया था। और हर वर्ष अपनी सारधानुसार गुरु दक्षिणा देते थे। जोतराम जी अपने जीवन में भभूता सिद्ध, गोगाजी एंव रामदेव जी की सेवा पूजा करते थे। जोतराम जी की एक बार अपने जीवनकाल में आँखे ख़राब हो गयी थी। तब इन्होने रामदेवजी से प्राथना की थी की यदि मेरी आँखे ठीक हो जाएगी तो में आपके धाम रामदेवरा जाकर धोक लगा कर आऊंगा। जोतराम जी की आँखे ठीक हो जाने पर वि.सं. 2016 (सन 1956 ) को रामदेवजी के मुख्य धाम रामदेवरा (रूणिचा) धोक लगाकर आये थे।
जोतराम जी अपने मानव जीवनकाल में देवत्व की शक्तिया आ गयी थी। एक बार अपनी भेड़े चरा रहे थे तब एक भेद बीमार हो गयी और जोतरमा जी ने उसका उपचार किया तो वो भेद ठीक हो गयी। बाबा जोतराम जी ने प्रथम इलाज इसी एक भेद का किया था।
जोतराम जी प्रतिवर्ष भादवा महीने में गोगाजी, रामदेवजी, भभूता सिद्ध की अपने घर पर ज्योत-बत्ती करते थे। ये प्रतिवर्ष भादवा महीने में गोगामेड़ी धाम पर धोक लगाकर आते थे इसी क्रम में वि.सं. 2016 (सन 1959 ) को जोतराम जी गोगामेड़ी जाने के लिए तैयार हुए लेकिन घरवालों ने कहा की इस वर्ष खेतीबाड़ी का काम ज्यादा है। इसलिए आप इस साल गोगामेड़ी ना जाकर अगले साल चले जाना। जोतराम जी की इच्छा गोगामेड़ी जाने की थी, लेकिन पिताजी के मना करने पर अपने दोस्तों को लेकर खेत पर चले जाते है।
भादवा सुदी नवमी शुक्रवार को पूरा सिन खेत में काम करने के बाद जोतराम जी शाम को घर आ जाते है और रात का भोजन करने के बात जोतराम जी अपने घर पर दोस्तों के साथ हुक्का पी रहे थे। इस समय रात्रि के 9:30 बजे काला नाग जोतराम जी को काट लेता है।
जोतराम जी का उपचार करवाने के लिए घरवालों ने हाकिम वैद बुलाये और पूरी रात उपचार करते रहे। लेकिन इनकी तबीयत ठीक नहीं हुयी।
तब गावँ के जुगलाल पंडित जो जोतराम जी के मित्र थे उन्होंने देसी उपचार किया लेकिन उस पारलौकिक शक्ति के आगे किसी का उपचार काम नहीं आया और जो होना था वही हुआ। भादवा सुदी दशमी शनिवार को लगभग सुबह 10 बजे के जोतराम जी ने प्राण त्याग दिए। तब गोगाजी महाराज, जोतराम जी को लेकर भभूता सिद्ध के पास ले जाकर कहते है की इसको अपना शिष्य बनाकर घोर कलयुग के दीन-दुखियो के दुखो का निवारण करवाओ और बाबा जोतराम ने भभूता सिद्ध जी को अपना गुरु धारण कर लिया। इधर जोतराम जी का शरीर निर्जीव हो जाता है। घर में सन्नाटा छा जाता है और सनातम धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार कर दिया जाता है। उस समय जोतराम जी की पत्नी अपने पीहर गयी हुयी थी। पिता सुल्तानाराम को बहुत अफ़सोस होता है यदि जोतराम को गोगामेड़ी जाने से नहीं रोकते तो ऐसा नहीं होता। जब जोतराम जी ने अपना शरीर छोड़ा उस समय उनकी आयु 27 वर्ष की थी और उनके बड़े पुत्र हरिसिंह 4 वर्ष और छोटे बेटे रामस्वरूप 11 महीने के थे।
कुछ समय गुजरने के बाद (लगभग 20 दिन ) जोतराम जी के खेत के पडोसी इन्द्राज भाकर के खेत में उनके सामने आकर खड़े हो गए और बोले भाई इन्द्राज में मारा नहीं हूँ। तुम हमारे घर पर जाकर घरवालों से कह देना की पंडितो द्वारा गायत्री मंत्र जाप करवाकर मेरी पूजा सुरु कर दे। में आप सबकी सहायता करूँगा। इन्द्राज भाकर जोतराम को सामने देखकर सोच रहे थे की जोतराम तो मर गया। यह मैंने किसको देख रहा हूँ। यह कौन बोल रहा है ? बस इतने में ही जोतराम जी गायब हो गए। इन्द्राज बहकर ने मन ही मन सोचा जिनका जवान लड़का गुजर हो। अगर मैं उनको यह बात बताऊंगा तो जोतराम के घर वालो को बुरा लगेगा और वे विश्वास भी नहीं करेंगे। इसलिए इन्द्राज भाकर ने इस बात की चर्चा किसी से नहीं की।
इसके कुछ समय बाद ऐसी ही घटनाये इन्द्राज गोदारा (जो की शिरोमणी भगत के नाम से प्रसिद्ध हुए ) के साथ हुयी। इन्होने इस घटना की चर्चा अपने घरवालों से की लेकिन जोतराम के हरवालो को कुछ नहीं बताया।
इसके बाद जोतराम जी भनीण गावँ में अपने पुराने घर पर भाई दूल्हाराम के मुचक से बोलकर कहा की मैंने इन्द्राज भाकर और इन्द्राज गोदारा को बताया था की तुम हमारे घर जाकर मेरे बारे में बताना, मैं मरा नहीं हूँ और इस संसार में दुखी होकर घूम रहा हूँ। आप पंडितो के द्वारा गायत्री मंत्रो का जाप करवा के मेरी आत्मा को शुद्ध कीजिये। मैं आप सभी की बहुत सहायता करूँगा और गुरु भभूता सिद्ध के आशीर्वाद से इस संसार के सभी दीन दुखियो के दुखो का निवारण करूँगा। इसके बाद जोतराम जी के पिताजी ने पंडितो से गायत्री मंत्र जाप के द्धारा देव स्थापना प्रकिर्या हवन आदि करवा कर शक्ति स्थापित कर देव रूप में मनाने लगे।
श्री होत्रम देव रूप में आने के बाद एक दिन अपने भाई दुल्हाराम के मुख बोलकर कहा की जब में शरीर त्यागकर देवलोक में गया तो वहाँ से मुझे सभी देवतागण भगाने लगे लेकिन मैं शाँत रहा और गुरु भभूता सिद्ध का स्मरण करता फिर भभूता सिद्ध को गुरु बनाकर अब संसार के दीन दुखियो की सेवा करने के लिए आया हूँ। आप चाँदनी नवमी को मेरा जागरण लगाकर और सुबह दशमी के दिन खीर का भोग लगाकर श्रद्धानुसार प्रसाद बाँटना। तभी माता राजकौर को कहा की आपको कोई परेशानी हो तो बस मेरा नाम पुकारना और मैं आपकी सहायता करूँगा। माता राजकौर बताती थी की मेरे को कोई भी परेशानी होती तो मैं आपके दादा जोतराम के आगे हाथ जोड़कर विनती करती थी की हे भगवन इस संसार में मेरी सहायता करने वाले तो आप ही है तो मेरी परेशानी तुरंत दूर हो जाती थी
बाबा जोतरामजी ने देवरूप में आने के बाद भगत दुल्हाराम के माध्यम से अनेक चमत्कार दिखाए और कैंसर, बांझपन आदि असाध्य रोगो का निवारण किया। भगत दुल्हाराम के अलावा ढाणी मेघसर के भगत गोपाल पंडा नाई और झोथड़ा के भगत मोहरसिंह के द्वारा बाबा ने अनेक चमत्कार दिखलाये। आज श्री जोतराम जी के 500 से ज्यादा धाम हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, पंजाब, उत्तरप्रदेश में बने हुए है जहां पर जोतराम बाबा भगतो के मुख बोल कर दुखियो के दुखो का निवारण करते है।
श्री जोतराम जी का मुख्य मंदिर -Jotram Main Temple
श्री जोतराम के देव रूप में आने के बाद सभी परिवार वाले जोतराम को मनाने लगे। तभी एक दिन दूल्हा राम भगत के माध्यम से पिता सुल्तानाराम ने पूछा की “बेटा हम तुम्हारा मंदिर बनाना चाहते है। आपका मंदिर किस जगह पर बनना चाहिए ?” तब जोतराम जी ने पिताजी से कहा की मेरा मंदिर उसी जगह बना दो जहाँ पर वर्तमान में भनीण गावँ में मेरा मुख्य धाम के नाम से मंदिर बना हुआ है। भनीण के मुख्य धाम का स्थान स्वयम जोतराम दवारा चुना हुआ है और इस संसार में बाबा जोतराम का यह प्रथम मंदिर बना। श्री जोतराम जोतराम जी ने कहा जो सेवक सच्चे मन और सच्ची सारधा भाव से भनीण पर धोक लगाएगा उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होगी।
मंदिर का निर्माण -Temple Construction
उस समय श्री जोतराम जी के सभी परिवार वालो ने छोटे से मंदिर का निर्माण करवाया और मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण श्री जोतराम जी के सभी भगतो और सेवको के सहयोग से किया जा रहा है। भनीण धाम पर धर्मशाला का निर्माण भी सभी सेवको एंव भगतो के सहयोग से श्री जोतराम सेवा समिति भनीण की देख रेख में किया जा रहा है। भनीण
भनीण मंदिर कैसे पहुंचा जाए? How to reach Bhanin Temple
इसे अभी अपडेट किया जायेगा
Ky yha ane p bhoot pret ka sankat ache s kat jat h
Bilkul kat jata hain…karke dekho aapko khud se maloom paega
Definitely