Home Info Blog जोतराम भगवान जीवन कथा हिंदी में

जोतराम भगवान जीवन कथा हिंदी में

13

जोतराम जीवन कथा हिंदी

बाबा जोतराम जी का जन्म भनीण गाँव ( तारानगर तहसील ,चूरू जिला , राजस्थान ) में चौधरी सुल्तान राम गोदारा के घर माता कस्तूरी देवी जी की कोख से हुआ । जोतराम जी बचपन से ही शीतल स्वभाव व् संत प्रविती के थे । धार्मिक विचारो व ईश्वर के प्रति उनका विशेष लगाव था । जोतराम जी के बाद उनके तीन भाई और चार बहनो ने माता कस्तूरी देवी की कोख से जन्म लिया । जिनके नाम क्रमशः थे – चौधरी झाबर राम , चौधरी लाधुराम , चौधरी हरदयाल है । व बहनो में नंदकौर , सजना , झड़िया व सोना है।जोतराम जी को अपनी बहन सजना से बहुत लगाव था ,

बचपन में एक बार उनकी आँखे दुखनी आ गयी थी तब से वे राम भजन में ज्यादा धयान देने लगे । इनका मुख्य कार्य खेती करना था , परन्तु जोतराम जी अपनी भेड़ बकरियो को स्वयं ही जंगल चराने ले जाते थे । 18 वर्ष की आयु में इनका विवाह सरदार शहर के गांव बिल्यू बिगोरा के चौधरी जिया राम की सुपुत्री राजकौर सिहाग से संपन्न हुआ । समय – समय पर माता राजकौर सिहाग ने दो पुत्रो को जन्म दिया जिनके नाम हरी सिंह व राम स्वरूप रखे गए , जोतराम जी ने 8 वर्ष तक गृहस्थ धर्म का पालन किया इसके बाद इसके बाद उनका मन गृहस्थी से उचाट हो गया , अब वो अपना ज्यादा समय जंगल में पशुओ को चराने में ही व्यतीत करने लगे।

एक दिन जंगल में पशु चराते समय इनकी मुलाकात गांव गांव गिरासर सोंलकी ढाणी के गोविन्द सिंह सोलंकी के सुपुत्र गुरु भभूता सिद्ध महाराज से हुयी ।(आपको बता दे की गुरु भभूता सिद्ध जी महाराज सूक्ष्म शरीर में जंगल में घूम रहे थे तब उन्होंने पशु चराते हुवे जोतराम जी को देखा और शरीर धारण करके जोतराम जी से मिले )इनसे मिलकर जोतराम जी महाराज अत्याधिक प्रभावित हुए और गुरु भभूता सिद्ध महाराज जी से अपना शिष्य बना लेने की अभिलाषा प्रकट की , गुरु भभूता सिद्ध महाराज भी जोतराम जी से प्रभावित हुए और उन्हें आभाष हो गया की जोतराम ही तेरे परमार्थ के कार्य में सहायक सिद्ध होंगे । भभूता सिद्ध जी ने जोतराम जी के सर पर हाथ रखा व विधि पूर्वक उन्हें दिखा दी ।जोतराम जी अपने पशुवो की चिंता छोड़ तन मन से गुरु महाराज की सेवा में समर्पित हो गए ।

गुरु संगति से उनके मन में वैराग्य जागा व परमार्थ करने की उमंग पैदा हुई ।एक दिन जोतां जी ने गुरु भभूता सिद्ध जी महाराज से अपने मन की इच्छा जताई और कहा गुरु जी इस संसार में लोग बहुत दुखी है , अगर आपकी इजाजत हो और आपका आदेश हो तो में दीन दुखियो के दुख दर्द दूर करना चाहता हु । तब गुरु भभूता सिद्ध महाराज जी ने कहा ” जोतराम ये घोर कलयुग है ऐसा करने के लिए तुझे ये हाड मांस का बना पांच तत्व का ये शरीर छोड़ना पड़ेगा क्या तुम ऐसा कर सकोगे ?”तब जोतराम जी ने उत्तर दिया “हे गुरु देव अगर आपकी कृपा हो जाये तो इस कारण के वास्ते में एक शरीर तो क्या मै हज़ार शरीर छोड़ने को तैयार हूँ मुझे इस नश्वर शरीर का कोई मोह नही है मुझे आपकी सभी सर्त मंजूर है , परमार्थ के कार्य के लिए मई हर बंधन तोड़ दूँगा” ।तब भभूता सिद्ध महाराज बहुत खुश हुए ओर कहा “धन – धन तेरे माता पिता को जिन्होंने तेरे जैसे सपूत को जन्म दिया आज तुझे पाकर मेरा ये जोग धन्य हो गया । मै तुझे आशीर्वाद देता हु तेरा नाम चारो कुंटो में अमर होगा “।आठ वर्ष गृहस्थ धर्म निभाने के बाद आखिर वो समय आ गया जब भभूता सिद्ध महाराज के बताये अनुसार शनिवार के दिन भादवा उतरनी दसे (दशमी ) को पीवणा द्वारा (साँप के छाती पर बैठकर साँस पिने से ) जोतराम जी ने सुबह 10 बजे सूरज निकलने के बाद नश्वर शरीर को त्याग दिया ।

शरीर को त्यागने के बाद जोतराम जी की आत्मा बहन सजना के घर गाँव बिल्यू पहुँची, दरवाजा खटखटा के सजना को जगाया वो बड़बड़ाती आँखे मल्टी आयी और बोली क्या हुआ सब ठीक तो है जोतराम जी साक्षात रूबरू खड़े होकर सजना को परचा दिया और बोले मुझको छोड़कर सब ठीक है माँ ने तुझे भनीण बुलाया है जल्दी आ जाना में जा रहा हु। जब सजना भनीण पहुंची तो वहाँ का नज़ारा देखकर विस्मित रह गयी चारो तरफ सन्नाटा छाया हुआ था वहाँ उसे जोतरंजोतरं जी का निर्जीव शरीर लेटा हुआ दिखा । सजना समझ गयी की उसके भाई की आत्मा उसके पास आयी थी और वह दहाड़े मार कर रोने लगी । जोतराम जी की ज्योति गुरु भभूता सिद्ध महाराज जी की ज्योति में लीन हो गयी ॥शरीर त्यागने के एक साल बाद जोतराम जी भाई दूल्हा राम जी के मुख बोले इसके बाद बुद्धराम गोदारा ,चंद्रो व सावत्री जी व गुगनराम जी के मुख बोले व कई चमत्कार दिखलाये जिन्हें देख कर सभी लोग हैरान रह गए ।

यू तो भनीण गाँव में घर घर में जोतराम जी का स्थान बना हुआ है, लकिन मुख्य मंदिर भनीण में घुसते ही बाबा जोतराम जी के नाम से प्रसिद्ध है जो की सबसे प्राचीन है भनीण में चैत सुदी दसे भादो दसे का मेला भरता हैदूर दूर से भगत लोग चमत्कार सुन कर आने लगे लकिन ग्यारह साल तक जोतराम जी का नाम एक ही इलाके में सिमट कर रह गया । तब बाबा जोतराम जी अपने गुरु भभूता सिद्ध महाराज से बोले हे गुरु देव आपने वचन दिया था की तेरा नाम चारो कुंटो में अमर होगा मैंने अपना वचन निभा दिया है अब आप अपना वचन पूरा करो तब भभूता सिद्ध महाराज जोतराम जी को लेकर कैलाश पर्वत शिवशंकर भगवन के पास पहुंचे।शंकर भगवन की समाधी लगी हुई थी वो अपने ध्यान में मगन थे जब उन्होंने अपने आँखे खोली तो भभूत सिद्ध महादेव के चरनोचरनो में वंदना करके बोले हे गुरु देव भोले भंडारी मैंने अपने शिष्य को वचन दे दिया है उसे पूरा करो इसका नाम चारो कुंटो में अमर कर दो ।

तब तब शंकर भगवान ने भभूता सिद्ध जी से कहा सिद्ध का वचन सिद्ध होता है । इसका नाम चार कुंटो में अमर होगा परन्तु एक अड़चन है तेरा ये चेला संसार में फैले ऊंच नीच के भेदभाव को भुला कर किसी अछूत के मुख बोलेगा तो इसका नाम अवश्य ही चार कुंटो में अमर होगा । तब जोतां जी ने शंकर भगवान के चरणों को स्पर्श करके कहा मुझे मंजूर है मै नीची जात वाले के मुख बोलूंगा मगर मेरी आपसे ये प्राथना है मुझे आशीर्वाद देकर ये वरदान दीजिये की दुनिया का कोई भी तांत्रिक स्याणा सेवड़ा अघोरी या जादूगर हम को अपने बस में न कर सके व अपना जादू टोन का इल्म हम पर ना चला सके । तब शंकर भगवन ने कहा तथास्तु ऐसा ही होगा । जाओ तांती भभूती देकर दुखियो के दुःख दर्द मिटाओ और मदिरा का परहेज बताओ कोई भी बहुत प्रेत जींद जादू टोना करवाया हुआ तुम्हारे सामने नही टिक सकेगा आपको इस कथा में कोई कमी या गलती मिलती है तो हमे कमेंट बॉक्स में लिखे

लेखक – मास्टर जगदीश लाल सारस्वतयह कथा मास्टर जगदीश लाल सारस्वत जी की पुस्तक से ली गयी है Jotram.com

Like Us on Facebook

Subscribe our Youtube Channel

13 COMMENTS

Leave a ReplyCancel reply

Exit mobile version